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इन आदिवासियों का शीर्षक विमुक्त घुमंतू आदिवासी होना चाहिए

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हमारे देश में आजादी के पहले आप राजी जनजाति के लिए 80173 में कानून बना उस कानून के तहत मां बाप बहन भाई बच्चे बूढ़े सभी जन्म से अपराधी ही होते हैं और मां के पेट से बच्चा पैदा होता है तो भी अपराधियों बच्चा पैदा होता है ऐसा कानून धरती पर लागू हुआ और उसके पञ आज भारत में करीबन 10 करोड लोग हैं यह लोगों को आज खानाबदोश नाम पर जाना जाता गुन्हेगार आदिवासीनाम से जाना जाता है और उसका दर्द दुख लेकर हम लेखन के माध्यम से संगठन के माध्यम से पूरे भारतवर्ष में आज काम चल रहा है लेकिन आज भी कानून के तहत हम इस देश के सही सिटीजन नहीं है क्योंकि हम संविधान के अंतर्गत हम नहीं आते हैं क्योंकि आजादी के 5 साल दिन के बाद हम लोगों को इस देश में व्यक्ति स्वातंत्र्य नहीं मिला १952 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि हम मुक्त हैं लेकिन आप लोग जंग लडने वाले आदिवासी आज से विशेष मुक्त है यानी उसका नामकरण विमुक्त हो गया आज विमुक्त लोग दर्द मारे यह गांव से वह गांव घूमते हैं ना दाना पानी है ना गांव में कोई रुकने की जगह है ना कोई काम देता है ना बना देता है पुलिस जबरन इन लोगों को चोर उचक्के डाकू बोल के अंदर करते हैं इनका कोई जमीन होता है ना उनके बारे में कोई बोलने वाला होता है आज यह हालत है कि भारत में 10 करोड़ लोगों को कोई सही मायने में आज भी हमारे देश में जानवरों से ज्यादा पत्थर जीना यह लोगों को पड़ता है उत्तर प्रदेश राजस्थान बिहार महाराष्ट्र कर्नाटक का आंध्र कोकण और बंगाल हर जगह पर और इतना ही नहीं मद्रास में भी यह गुन्हेगार जमाती का कायदा लागू है पूरे भारतवर्ष में आज भी विन लोगों को हर जगह सताया जाता है विन काय् एजुकेशन इन की शिक्षा कोई भी इनको मुदा नहीं है विन के लिए भारत के संविधान में न होने के कारण विन का कोई वजन नहीं बनता उनकी शिक्षा रहन सहन या कोई सुविधा इन लोगों को नहीं मिलती है यह हकीकत है और मैं चाहता हूं कि भारत के विद्वानों ने बुद्धिवादी लोगों ने इस के बाहर इसके बारे में दोबारा सोचना चाहिए क्योंकि आज की स्थिति में जब मेरे जैसा लेखक लिख रहा है तो उचक्का नाम या इंग्लिश में दो ब्रांडेड यह किताब पढ़ने से लोगों को पता चलता है कि इन लोगों की क्या हालत है यह सुनकर आप भी चौक जाएंगे लेकिन यह भारत के आज भी सही सिटीजन नहीं है इसलिए महाराष्ट्र जैसे प्रोग्रेसिव स्टेट में भी इन लोगों के लिए कोई प्रावधान नहीं कि जो बजट बनता है स्वतंत्र बजट इन के लिए नहीं बनता नाम तो विमुक्त घुमंतू बोला जाता है लेकिन इनके एजुकेशन के लिए कोई सुविधा नहीं रहने से यह लोगों का महाराष्ट्र में तीन करोड़ लोग रहने के बाद भी यह 1% बी विन काय् एजुकेशन आज नहीं हो पाया है और बहुत बुरी हालत से यह लोग गुजर रहे हैं यह आदिवासी की कोई जाति नहीं है इन लोगों को आज भी विमुक्त घुमंतू आदिवासी बोला बोला तो जाता है लेकिन आदिवासी की कोई सोलत नहीं मिलती आंध्र कर्नाटक में थोड़ी बहुत लोग आदिवासी में है लेकिन इनके बारे में सही अध्ययन न होने से और हमारा देश आजादी के बाद बाबू लोग उनकी आजादी का आदेश हो गया और आमिर और ऊंचे पद के लोगों को लिए ही हमारे देश की सब सुविधा मुहैया होती है लेकिन यहां के गरीब लोगों को आदिवासी लोगों को आज खाली बजट बनता है लेकिन बजट किधर जाता है किस के घर में जाता है इसके बारे में पता लगाना जरूरी है आज खाली देश आजाद हुआ है झंडे के लिए लेकिन यहां के आदिवासी क्रिमिनल ट्राइब  को आज भी आजादी मिलना बाकी है उनको जानवरों से ही बदतर जीना पड़ता है गाय देसी यह सबकी माता होती है सब का पूजन होता है यानी जानवरों से यहां अच्छा माना जाता है लेकिन अनाज खाने के लिए तड़पना वाला आदिवासी आज दर दर की ठोकरे खा रहा है गाय के लिए सोचा जा रहा है उसके लिए कानून बन रहा है लेकिन आदिवासी के लिए कोई कानून नहीं बन रहा है उनको सताया जा रहा है क्या ईसको आजादी बोले तो चलेगा क्या
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  1. डॉ अनिल साळुंके, सरचिटणीस, भारतीय भटके विमुक्त युथ फ्रंट says:

    लक्ष्मणराव गायकवाड,सप्रेम नमस्कार
    अतिशय उपयुक्त माहिती उपलब्ध करुन दिली आहे आणि खऱ्या अर्थाने मूळ प्रवाहापासून अनेक वर्षे दूर राहिलेल्या संमाजाची व्यथा आपण मांडली आहे.भटक्या विमुक्त जाती जमाती या देशातील मूळ आदिम जाती जमाती आहेत.त्यांना अनुसूचित जमाती च्या सवलती मिळाल्या पाहिजेत.आदिवासी जमातींना लावलेले निकष भटक्या विमुक्त जाती जमतीमद्धे आढळून येतात.त्यांच्यावर वर्षांनूवर्षे अन्याय होत आहे.हा अन्याय दूर होण्यासाठीचे प्रयत्न आपल्या माध्यमातून होणे गरजेचे आहे.धन्यवाद!!!
    आपला
    डॉ अनिल साळुंके

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